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पपीता -Papaya

पपीते की खेती से किसानों की हो सकती है दोगुनी आय, जानें कैसे

पपीते की खेती से किसानों की हो सकती है दोगुनी आय, जानें कैसे

अगर आप भी पपीते की खेती (papite ki kheti, papaya farming) करना चाहते हैं तो देर ना करें। आजकल व्यापक पैमाने पर पपीते की खेती की जा रही है। किसान अपने खेतों में पपीते की फसल को अधिक से अधिक लगा रहे हैं। 

इसके पीछे की वजह यह है कि यह बहुत ही कम समय में अधिक मुनाफा देने वाला फसल है। आज के इस दौर में एक साइड बिजनेस की तरह उभर रहा है।

बेहतर मुनाफे के लिए रखना होगा इन चीजों का ध्यान

अन्य फसलों के मुकाबले पपीते ( पपीता (papaya), वैज्ञानिक नाम : कॅरिका पपया ( carica papaya ) ) को उगाना आसान है, क्योंकि इस फसल को बहुत कम रखरखाव की जरूरत होती है और साथ में कम पानी की भी आवश्यकता होती है। 

एक बार जब फसल अच्छी तरह से उपज जाता है तो आपको यह बेहतर मुनाफा दे जाता है। पपीते की खेती से आप औसतन तीन लाख तक का मुनाफा 1 एकड़ जमीन से कमा सकते हैं। यह मुनाफा 5 लाख प्रति एकड़ तक भी जा सकता है। इसके लिए आपको सही समय में सही मौसम में पपीते को खेत में लगाना सुनिश्चित करना होगा।

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अगर आप पपीते से बेहतर मुनाफा कमाना चाहते हैं तो आपको कुछ चीजों पर ध्यान देने की जरूरत है। अगर आप पपीते के फसल को मार्च से मई के दौरान मार्केट में बेचना चाहते हैं तो उस समय आपको घाटे का सौदा करना पड़ेगा, क्योंकि मार्च से मई के दौरान बाजार में आम की बहुत मांग होती है 

और उस समय बाजार में अधिकतर लोग आम खरीदते हुए दिखाई देते हैं। मार्च से मई के दौरान सभी मजदूर आम तोड़ने और आम को बाजार तक पहुंचाने में व्यस्त रहते हैं। अगर आपको उस वक्त मजदूर मिलते भी हैं तो आपको अधिक भुगतान करना पड़ेगा और आपको बेहतर मुनाफा भी बाजार में नहीं मिल पाएगा। 

इसलिए यह जरूरी है कि सही समय में सही मौसम में बाजार की स्थिति को ध्यान में रखते हुए पपीते की खेती को करना चाहिए, क्योंकि इसे सभी लोग नहीं खरीदते या छोटे-छोटे समूहों के द्वारा खरीदा जाता है। पपीता पोषक तत्वों से भरा बहुत ही लोकप्रिय फल है। अ

गर आप पपीते की खेती करना चाहते हैं तो इसे आप पूरे साल कर सकते हैं। यह दुनिया भर में लोकप्रिय है क्योंकि यह त्वरित रिटर्न देता है।

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अगर ऐसे करेंगे खेती तो मिलेगा खूब लाभ

पपीते की खेती से बेहतर लाभ पाने के लिए आपको अपनी उपज का समय निर्धारित करना होगा। साथ में आपको यह ध्यान रखना होगा कि आप किस प्रकार के बीज को बो रहे हैं। आप बीज को अनेक स्रोतों से प्राप्त कर सकते हैं। 

अगर आप बेहतर क्वालिटी की बीज लेना चाहते हैं तो आप अपने नजदीकी कृषि विज्ञान केंद्र से खरीदें। अमूमन भारत के सभी राज्यों में पपीते की खेती की जाती है। कुछ ऐसे राज्य हैं जहां मौसम पपीते के अनुकूल होने के कारण पपीता वहां बहुत तेजी से बढ़ता है। 

पपीता एक उष्णकटिबंधीय फल है। इसे इसमें बहुत ज्यादा पानी की खपत नहीं है। अगर ज्यादा पानी पपीते की जड़ के पास दिख जाए तो पपीता का बर्बाद होना सुनिश्चित हो जाता है। 

मुख्य रूप से पपीता उगाने वाले राज्य केरल, महाराष्ट्र, गुजरात, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, बिहार, कर्नाटक, उड़ीसा, पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश और अन्य राज्य हैं। इन सभी राज्यों में अलग-अलग किस्म की पपीते की प्रजाति पाई जाती है। पपीते की खेती के लिए तापमान कम से कम 12 डिग्री होना अनिवार्य माना जाता है। 

अगर यह तापमान 12 डिग्री से नीचे चला जाता है तो पपीता उस क्षेत्र के लिए उपयुक्त नहीं होते हैं। उस क्षेत्र में भी आप पपीते को नहीं उपजा सकते हैं जहां जलभराव एक चिंता का विषय बना हुआ है। 

बेहतर मुनाफा कमाने के लिए आपको उचित समय उचित मौसम के अनुसार एक्सपोर्ट की राय लेकर इसकी खेती करनी चाहिए। इससे आप बेहतर मुनाफा कमा सकते हैं।

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फल तैयार होने में लगता है इतना समय

पपीता कोई मौसम के अनुरूप उगाने वाला फल नहीं है। गर्मियों के दौरान पपीते की फलों की मांग ज्यादा होती है और उस वक्त इसका स्वाद भी बहुत ही लाजवाब होता है। सामान्य तौर पर पपीते के फलने का कोई मौसम नहीं होता है।

पपीते के पौधे को अंकुर लगने से लेकर फलने तक 8 से 9 महीने का समय लगता है और इसका पौधा लगभग 3 साल तक जीवित रहता है। अधिकांश पौधे की तुलना में पपीते को बहुत ही कम पानी की आवश्यकता होती है।

ड्रिप सिंचाई करने के बाद प्रत्येक पौधों को लगभग 6 से 8 लीटर पानी की आवश्यकता पड़ती है। अगर आप अपने पपीते के फल को फसल को तेजी से बढ़ाना चाहते हैं तो इसके लिए आपको सही उर्वरक और मिट्टी की स्थिति को जानना बेहतर होगा।

स्वास्थ्य के लिए भी है लाभप्रद

यह फाइबर, विटामिन सी और एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर होता है और यह जौंडिस जैसे बीमारी में रामबाण का काम करता हैं। एक मध्यम आकार के पपीते में लगभग 120 कैलोरी पाया जाता है और यह वजन घटाने में भी काफ़ी मददगार साबित होता है। 

इसमें चीनी की मात्रा कम होती जिसके कारण यह मधुमेह रोगियों के लिए काफ़ी लाभप्रद होता है। पपीता विटामिन सी जैसे कई पोषक तत्वों से भी भरपूर होता है जो तनाव से मुक्त रखने में मदद करता है।

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भारत में पहली बार 2014 में नेशनल हॉर्टिकल्चर मिशन यानी राष्ट्रीय बागवानी मिशन ( NHM - National Horticulture Mission ) में पपीते को शामिल किया गया था, जिसके अच्छे परिणाम सामने आये थे। 

किसानों का पपीते की खेती करने से बेहतर मुनाफे के साथ रोजगार के भी विकल्प उभर कर सामने आ रहे हैं। भारत में पपीते की खेती एक बहुत ही लाभदायक और अपेक्षाकृत सुरक्षित कृषि व्यवसाय के तर्ज पर उभर रहा है। यह एक बहुमुखी फसल है और इसकी खेती सब्जियों, फलों और लेटेक्स के लिए की जा सकती है। 

यहां तक ​​कि इसके सूखे पत्तों का बाजार में दवा बनाने के लिए भी बहुत मांग है। अगर आपने सभी बातों का ध्यान में रखते हुए और पपीते की खेती करते हैं तो जाहिर है की आप अच्छी उपज प्राप्त कर पाएंगे और अपनी आय को दोगुनी करने में सक्षम हो पाएंगे।

इस माह नींबू, लीची, पपीता का ऐसे रखें ध्यान

इस माह नींबू, लीची, पपीता का ऐसे रखें ध्यान

नींबू (Lemon) की नीली फफूंद से सुरक्षा

लीची (Lychee) खाने वाली इल्ली से रक्षा

पपीता (Papaya) पौधे को गलने से बचाएं

फलदार पौधों की बागवानी तैयार करने के लिए अगस्त का महीना अनुकूल माना जाता है। नींबू, बेर, केला, जामुन, पपीता, आम, अमरूद, कटहल, लीची, आँवला का नया बाग-बगीचा तैयार करने का काम किसान को इस महीने पूरा कर लेना चाहिए। भाकृअनुप- 
भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (ICAR -Indian Council of Agricultural Research), पूसा, नई दिल्ली के कृषि एवं बागवानी विशेषज्ञों ने इनकी खेती के लिए महत्वपूर्ण सुझाव दिए हैं। इस लेख में हम नींबू (Lemon), लीची (Lychee), पपीता (Papaya) की बागवानी से जुड़े खास बिंदुओं पर अपना ध्यान केंद्रित करेंगे।

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नींबू (Lemon) की देखभाल

नींबू के पौधे खेत, बागान या घर की बगिया में रोपने के लिए अगस्त का महीना काफी अच्छा होता है। कृषक मित्र उपलब्ध मिट्टी की गुणवत्ता के हिसाब से नींबू की किस्मों का चयन कर सकते हैं। कृषि विज्ञान केंद्र, उद्यानिकी विभाग से संबद्ध नर्सरी के अलावा ऑन लाइन प्लेटफॉर्म से किसान, उपलब्ध लागत के हिसाब से पौधों की किस्मों का चयन कर सकते हैं। इन केंद्रों पर 20 रुपये से लेकर 100, 200 एवं 500 रुपया प्रति पौधा की दर से पौधे खरीदे जा सकते हैं। उल्लेखनीय है कि पौधे की कीमत उसकी किस्म के हिसाब से घटती-बढ़ती है।

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अगस्त का महीना नींबू और लीची के पेड़-पौधों में गूटी बांधने के लिहाज से काफी उपयुक्त माना जाता है।

ऐसे करें लेमन सिट्रस कैंकर का उपचार

नींबू के सिट्रस कैंकर (Citrus canker) रोग का समय रहते उपचार जरूरी है। यह उपाय ज्यादा कठिन भी नहीं है। नींबू में सिट्रस कैंकर रोग के लक्षण पहले पत्तियों में दिखने शुरू होते हैं। बाद में यह नींबू के पौधे-पेड़ की टहनियों, कांटों और फलों पर पर भी फैल जाते हैं। इसकी रोकथाम के लिए जमीन पर गिरी हुई पौधे की पत्तियों को इकट्ठा कर नष्ट कर देना चाहिए। इसके अलावा नींबू की रोगयुक्त टहनियों की काट-छांट भी जरूरी है। बोर्डाे (Bordo) मिश्रण (5:5:50), ब्लाइटाॅक्स (Blitox) 0.3 फीसदी (3 ग्राम दवा प्रति लीटर पानी में घोलकर) का छिड़काव भी सिट्रस कैंकर रोग से नींबू के पेड़ के बचाव में कारगर साबित होता है।

रसजीवी कीट से रक्षा

नींबू के पौधे का रस चूसने वाले कीट से भी समय रहते बचाव जरूरी है। नींबू के पौधे का रस चूसने वाले कीट से बचाव करने के लिए मेलाथियान (Malathion) का स्प्रे मददगार होता है। मेलाथियान को 2 मिलीलीटर पानी में घोलकर पौधे पर छिड़काव करने से नींबू की रक्षा करने में गार्डनर को मदद मिल सकती है।
लग सकता है नीला फफूंद रोग
अगस्त महीने के दौरान नींबू के पौधों पर नीला फफूंद रोग लगने की आशंका रहती है। लेमन ट्री या प्लांट की नीले फफूंद रोग से रक्षा के लिए आँवला वाला तरीका अपनाया जा सकता है। इसके लिए नींबू के फलों को बोरेक्स या नमक से उपचारित कर नीला फफूंद रोग से रक्षा की जा सकती है। नींबू के फलों को कार्बेन्डाजिम या थायोफनेट मिथाइल की महज 0.1 प्रतिशत मात्रा से उपचारित करके भी नीला फफूंद रोग को फैलने से रोका जा सकता है।

लीची (Lychee or Litchi) की रक्षा

रस से भरी, चटख लाल, कत्थई रंग की लीची देखकर किसके मुंह में पानी न आ जाए। बार्क इटिंग कैटरपिलर (Bark Eating Caterpillar) भी अपनी यही चाहत पूरी करने लीची पर हमला करती है।

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आपको बता दें बार्क इटिंग कैटरपिलर लीची का छिलका खाने की शौकीन होती है। लीची का छिलका खाने वाले पिल्लू (बार्क इटिंग कैटरपिलर) की रोकथाम भी संभव है। इसके लिए लीची के जीवित छिद्रों में पेट्रोल या नुवाॅन या फार्मलीन से भीगी रुई ठूंसकर छिद्र मुख को चिकनी मिट्टी से अच्छी तरह से बंद कर देना चाहिए। बगीचे को स्वच्छ एवं साफ-सुथरा रखकर भी इन कीटों से लीची का बचाव किया जा सकता है।

पपीता (Papaya) का रखरखाव

पपीता का पनामा विल्ट (Panama wilt) एवं कॉलर रॉट (Collar Rot) जैसे प्रकोप से बचाव किया जाना जरूरी है। पपीते के पेड़ में फूल आने के समय 2 मिली. सूक्ष्म तत्वों को एक लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करने की सलाह वैज्ञानिकों ने दी है।

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पनामा विल्ट की रोकथाम

पनामा विल्ट के पपीता पर कुप्रभाव को रोकने के लिए बाविस्टीन(BAVISTIN) का उपयोग करने की सलाह दी गई है। बाविस्टीन के 1.5 मि.ग्रा. प्रति लीटर पानी मिश्रित घोल से पनामा विल्ट से रक्षा होती है। बताए गए घोल का पपीते के पौधों के चारों ओर मिट्टी पर 20 दिनों के अंतराल से दो बार छिड़काव करने की सलाह उद्यानिकी सलाहकारों ने दी है।

काॅलर राॅट की रोकथाम

काॅलर राॅट भी पपीता के पौधों के लिए एक खतरा है। पपाया प्लांट पर काॅलर राॅट के प्रकोप से पपीता के पौधे, जमीन की सतह से ठीक ऊपर गल कर गिर जाते हैं। इस समस्या के समाधान के लिए पौधों पर रिडोमिल (RIDOMIL)(2 ग्राम/लीटर) दवा का छिड़काव करना फायदेमंद होगा। नींबू, लीची और पपीता के खेत में जलभराव से फल पैदावार प्रभावित हो सकती है। इन खेतों पर जल भराव न हो इसलिए कृषकों को जल निकासी के पर्याप्त इंतजाम नींबू, लीची, पपीता के खेतों पर करने चाहिए।
लाखों का हुआ नुकसान, इस स्टेट में हो गया पपीते का फसल बर्बाद

लाखों का हुआ नुकसान, इस स्टेट में हो गया पपीते का फसल बर्बाद

महाराष्ट्र में पपीते की फसल को फंगल वायरस ने बड़ा नुकसान पहुंचाया है। किसानों का लाखों रुपए का पपीता का फसल बर्बाद हो गया है, जिससे किसान काफी चिंतित है। किसानों का फसल बर्बाद होना अब तो आम बात हो गया है। कभी बारिश, बाढ़ तो कभी अन्य प्राकृतिक आपदाओं के कारण किसानों को हमेशा क्षति का सामना करना पड़ता है, इस साल भी बारिश, बाढ़ और सूखे के कारण किसानों की करोड़ों रुपए की फसल बर्बाद हो गई। [embed]https://www.youtube.com/watch?v=7Sqo7C2ljF4&t=4s[/embed] अभी किसान अपने नुकसान की मार झेल ही रहे थे, कि महाराष्ट्र में वायरस ने पपीते की फसलों को बर्बाद करना शुरू कर दिया। इन दिनों महाराष्ट्र में पपीते की फसल तेजी से बर्बाद हो रही है, जिसके कारण किसान बहुत ही मायूस हो गए हैं और अब वह दूसरे फसल की ओर रुख कर रहे हैं। भारी नुकसान का सामना करने के बाद किसानों के पास अब कोई रास्ता नहीं बच गया हुआ है।


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महाराष्ट्र के बीड जिले में किसानों ने कई एकड़ में पपीते की खेती की थी, जिसमें फल लगाना शुरू हो गया था। लेकिन फल के पकने के समय फंगल वायरस के कारण सभी फल खराब होते नजर आ रहे हैं। जिस तरह सूखे और बाढ़ के मार झेलने के बाद किसान काफी चिंतित हो गए थे, और वह पूरी तरह से पपीते की फसल पर निर्भर हो गए थे, कि इससे अर्जित होने वाली कमाई से अपने नुकसान की भरपायी कर पाएंगे। लेकिन इस बार भी उन्हें निराशा हाथ लगी है, जो कि काफी चिंता का विषय है। फंगल वायरस के प्रकोप के कारण पपीते में धब्बे दिखने लगे हैं, जिसके बाद पपीता काला होकर खराब हो जा रहा है। पपीते के इस तरह से खराब हो जाने के कारण किसान खुद ही अपने बगीचे को खत्म करने में लगे हुए हैं, गौरतलब है कि किसानों ने बगीचे को सवारने में लाखों रुपए तक खर्च किए थे। इस बार किसानों के बगीचे में पपीते की अच्छी पैदावार हो रही थी। पिछले महीने में हुई बारिश के कारण पपीते को काफी नुकसान हुआ था। बारिश के बाद से पपीते के पेड़ों में सड़न पैदा हो गई थी, सड़न होने के पीछे फंगल वायरस को कारण बताया जा रहा है। पपीते बुरी तरह से खराब होने के बाद किसान सरकार से मदद की गुहार लगा रहे हैं।


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हालांकि सरकार के तरफ से किसानों को पपीते के फसल के बर्बाद हो जाने के बाद अभी तक किसी तरह का कंपनसेशन प्राप्त नहीं हुआ है। जिससे किसान बहुत ही चिंतित है। मीडिया रिपोर्ट की बात करें तो किसानों का इतना बुरा हाल हो गया है, कि उन्हें यह समझ नहीं आ रहा है कि अब वह कौन सी फसल की खेती करें और किस फसल से बेहतर उपज के साथ बेहतर मुनाफा अर्जित कर के अपने हुए नुकसान की भरपायी कर पाऐं। सूखे और बारिश का दंश झेल रहे किसानों को जिस तरह से हर बार निराशा हाथ लग रही है, उससे कहीं ना कहीं आमजन पर आने वाले समय में महंगाई का गहरा प्रभाव देखने को मिलेगा। उधर महाराष्ट्र में अनार और मोसंबी के खेती करने वाले किसानों को भी इस बार भारी बारिश के कारण काफी नुकसान हुआ है। पर्याप्त मात्रा में उत्पादन की कमी हुई है, जिससे किसानों को भारी नुकसान का सामना करना पड़ रहा है।


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आजकल ज्यादातर किसान पारंपरिक खेती को छोड़ बागवानी की खेती करना शुरू कर रहे हैं। कई जिलों में बागवानी का क्षेत्रफल भी बढ़ रहा है, लेकिन बागवानी की खेती में भी फंगल वायरस ने इस कदर हमला किया है, कि बागवानी उजड़ने लगी है। इससे किसानों का भारी नुकसान हो रहा है। इस बार किसानों को पपीते से अच्छा मुनाफा मिलने की उम्मीद थी। लेकिन दोबारा से बारिश के हो जाने के कारण उनके मंसूबे पर पानी फिर गया है। आर्थिक संकट का मार झेल रहे किसानों के लिए अब दूसरा कोई रास्ता नहीं दिख रहा है। ऐसी स्थिति में सरकार के तरफ से भी किसानों के लिए किसी भी तरह के आर्थिक सहयोग की बात अभी तक नहीं की गई है, जिससे किसान काफी चिंतित है।